वृहद् वास्तुशास्त्र – एक महाग्रन्थ

Book’s Nameवृहद् वास्तुशास्त्र – एक महाग्रन्थ
Rating 11304 Reviews
Year Of Publication2018
LanguageHindi ( हिन्दी )
Author’s Nameडॉ. आनन्द भारद्वाज, पी.एच.डी.(वास्तुशास्त्र), डी.एस.सी.(वास्तुशास्त्र),
एवं संतोष विश्वनाथ फासे, डी.पी.ई, डी.बी.एम, वास्तु महर्षि
AvailabilityIn Stock
CoverHardcover
Size(Big Size) 8”X11”
WeightApprox 1 Kg
PublisherNotion Press, Chetpet, Chennai-600031 (INDIA)
Emailiivc999@gmail.com
Phone+91-9811656700
ISBN978-1-64429-206-8
No. of Pages311 Pages
PriceINR 850

Description: Looking at the huge demand from Hindi readers, this book is specifically written on Vastu Shastra in Hindi language but the text is in very simple & commonly speaking hindi language. सुंदर, सचित्र, सरल, सटीक व सम्पूर्ण वैदिक वास्तुशास्त्र के वैज्ञानिक, व्यावहारिक एवं तर्क संगत सिद्धांतों को सरलतम भाषा में व्यक्त करता एक ग्रन्थ I वैसे तो वास्तुशास्त्र पर लिखी गईं हजारों किताबें बाज़ार में मौजूद हैं और हर दिन आप टी. वी., इंटरनेट, रेडियो, सोशल मीडिया के जरिए या फिर अखबार के माध्यम से वास्तुशास्त्र के विषय में सुनते, देखते व पढ़ते रहते हैं। कई बार आपको इससे जानकारी भी मिलती है । इस जानकारी का उपयोग करके आप अपने भवन में छोटे-मोटे बदलाव भी करते हैं। इससे कई बार फायदा भी होता है या फिर आपके मन में वास्तु के विषय में बहुत से प्रश्न खड़े हो जाते हैं जिनका उत्तर आपको कहीं से नहीं मिलता परन्तु यह पुस्तक वास्तुशास्त्र के कुछ ऐसे रहस्यों को भी उजागर करती है जो कि आज तक टी. वी., इंटरनेट, किसी पुस्तक में या फिर किसी वास्तु शास्त्री द्वारा आपको नहीं बताए गए।

इस पुस्तक के माध्यम से हमारी यही कोशिश है कि वास्तुशास्त्र के सभी तथ्यों का हमें उचित ज्ञान प्राप्त हो। इस पुस्तक की विशेष बात यह है कि हमने इसमें जटिल शब्दों का प्रयोग नहीं किया है बल्कि वास्तुशास्त्र के सभी नियमों को रोज़मर्रा की बोलचाल में प्रयोग होने वाली बड़ी आसान सी भाषा में समझाया है । इसे ज्यादा आसानी से समझाने हेतु  हमने अनेकों चित्रों का भी सहारा लिया है जिससे कि किसी भी सिद्धांत को ज्यादा स्पष्ट रूप से समझा जा सके।

यह पुस्तक आम व्यक्ति के साथ साथ बिल्डिंग का निर्माण करने वाले इंजिनियर, वास्तु का अध्ययन करने वाले विद्यार्थी और जो व्यक्ति पहले से वास्तु सलाहकार के रूप में काम कर हैं या जिनको कि वास्तु के प्रति लगाव है उन सभी के लिए यह मार्गदर्शक के रूप में काफी लाभदायक एवं सहायक सिद्ध हो सकती है। वास्तुशास्त्र के सभी सिद्धान्त इस पुस्तक में सरल भाषा में लिखे गये हैं। वास्तु एक विज्ञान है और इसे विज्ञान के नजरिए से ही देखना चाहिए यह समझाने की कोशिश हमने इस पुस्तक के माध्यम से की है। इसके सभी सिद्धांतों में विज्ञान किस प्रकार निहित है या विज्ञान की कसौटी पर ये कैसे खरे उतरते हैं इसको हमने इस पुस्तक के माध्यम से उजागर किया है। इस पुस्तक में वास्तुशास्त्र के सिद्धांतों के सभी पहलुओं को छूने की कोशिश की गई है तथा वास्तुशास्त्र के सभी पहलुओं की अहम जानकारी देने का प्रयत्न कम से कम व सरल शब्दों के द्वारा किया गया है।

वास्तुशास्त्र के प्रति अनेकों लोगों के मन में काफी जिज्ञासा हो सकती है व कुछ लोग ऐसा समझते हैं कि वास्तुशास्त्र तंत्र-मंत्र का ही एक अंग है। परन्तु ज्योतिष या तंत्र-मंत्र की अपनी एक अलग पहचान है। वास्तुशास्त्र विज्ञान के साथ तालमेल बनाता है और इससे नज़दीक का रिश्ता रखता है। वास्तु शास्त्र की वैदिक पद्धति का जन्म भारत में ही हुआ है। यह प्रकृति के नैसर्गिक नियमों के साथ जुड़े रहने की कला है। कुछ लोग वास्तुशास्त्र के विषय में ज्यादा बात नहीं करते या उस पर कम विश्वास करते हैं। एक ओर तो हम आधुनिकता के कारण विकसित हो रहे हैं परन्तु दूसरी ओर हमें आज स्वास्थ्य, धन, शिक्षा, विकास, मानसिक शांति आदि का पूरा सुख नहीं मिल पा रहा है – कहीं इसका कारण वास्तु के नियमों की उपेक्षा तो नहीं – यह विचारणीय प्रश्न है। भारत के ऋषि-मुनियों द्वारा दिए गये इस अद्भुत ज्ञान का उपयोग आज दुनिया के अनेकों देशों में भी बहुत से लोग कर रहे हैं।

यद्पि वास्तुशास्त्र के बहुमूल्य ज्ञान का उपयोग व प्रयोग विश्व के अनेकों देशों में होने लगा है किन्तु हमारे भारत देश में जन्मा यह वास्तु विज्ञान आज ज्यादा उपयोग में नहीं लाया जाता या फिर इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए हमने इस पुस्तक में वास्तुशास्त्र के सभी सिद्धांतों को बड़ी बारीकी से लिखा है। इसमें लिखे गये सिद्धान्त एकदम सटीक ज्ञान, अनुभव एवं विज्ञान पर आधारित तथ्यों के परिप्रेक्ष्य में वर्णित किये गये हैं। इस पुस्तक को लिखने के पीछे हमारा यही ध्येय कि ज्यादा से ज्यादा लोग इस पुस्तक के माध्यम से वास्तुशास्त्र के विषय में जानें, पढ़ें व उनकी सच्चाई का पता लगा सकें  साथ ही साथ लोगों के मन से वास्तुशास्त्र के प्रति पनपता अंध विश्वास भी कम हो। भारत में जन्मे इस शास्त्र का प्रसार एवं विकास भारत के साथ-साथ दुनिया के सभी देशों में हो सके और इसका उपयोग करके सभी लोग अपना जीवन सुख एवं समृद्धि के साथ व्यतीत करें यही हमारी मनोकामना एवं इच्छा है। प्रस्तुत पुस्तक के लेखन का ध्येय भी यही है।

Author’s Details: Dr. Anand Bhardwaj is one of the most renowned Vastu consultant of the world. वास्तु शास्त्र के जगत में डॉ. आनन्द भारद्वाज जी (एम.ए., एम.बी.ए, पी.एच.डी. (समाजशास्त्र), पी.एच.डी.(वास्तुशास्त्र), डी.एस.सी.(वास्तुशास्त्र), का नाम सर्वोच्च योग्यता प्राप्त, विश्व विख्यात एवं वरिष्ठतम वास्तु शास्त्रियों की सूची में अग्रिम पंक्ति में आता है। उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन वैदिक वास्तु शास्त्र पर अध्ययन, अध्यापन, शोध, खोज एवं विश्लेषण को समर्पित किया।

वैदिक वास्तुशास्त्र के क्षेत्र में ज्ञात एवं उपलब्ध जानकारी के आधार पर वे तीसरी पीढ़ी के वास्तु शास्त्री हैं जिन्होंने वास्तु शास्त्र को विज्ञान की कसौटी पर परखा, इसे जाना और समाज को वास्तु के ज्ञान-विज्ञान से परिचित करवाया। इस पुस्तक में उपलब्ध सम्पूर्ण पठन सामग्री डॉ. आनन्द भारद्वाज जी के जीवन के एक लम्बे अनुभव, अध्ययन, विश्लेषण एवं रिसर्च के परिणाम स्वरुप पाठकों के समक्ष उपस्थित हो सकी है। इस पुस्तक को पढ़ कर कोई भी सामान्य व्यक्ति अपना घर, फैक्टरी, ऑफिस, दुकान, शोरूम, स्कूल, कॉलेज, कॉर्पोरेट ऑफिस, कारखाना, वर्कशॉप आदि सभी प्रकार की बिल्डिंग को बड़ी आसानी से व त्रुटीरहित ढंग से बना सकता है या फिर पहले से बने हुए भवन में वास्तु अनुसार ढांचागत सुधार भी कर सकता है।

वास्तु दोषों का बिना तोड़ फोड़ निवारण करना उनकी सबसे बड़ी दक्षता एवं योग्यता  है। वास्तु दोषों को दूर करने के लिए वह किसी भी प्रकार के तोड़−फोड़ के उपाय नहीं बताते बल्कि छोटे छोटे उपायों के साथ निसर्ग नियमों का तालमेल रखते हुए किसी भी प्रकार के वास्तुदोष का निराकरण या समाधान घरेलू उपचारों अर्थात होम रेमेडीज से करते हैं। उनके द्वारा बताये गये उपाय एकदम सटीक एवं कम खर्चीले होते हैं। वह स्वयं ही किसी भी प्रकार की तोड़-फोड़ के विरुद्ध हैं। उनका यह मानना है कि तोड़−फोड़ के कारण पर्यावरण को हानि पहुँचती है और साथ ही साथ भवन के मालिक को भी इसकी भारी कीमत उठाना चुकानी पड़ती है। उनकी यह बात एकदम सत्य है क्योंकि पर्यावरण की रक्षा करना ही वास्तुशास्त्र का मूल सिद्धान्त है और इसी मूल सिद्धान्त के महत्व को समझते हुए वह पर्यावरण को हानि पहुंचाने वाले उपाय नहीं बताते हैं।

वे इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वैदिक कल्चर, नई दिल्ली  (International Intstitute of Vaidic Cultur, New Delhi) नामक संस्था के  संस्थापक एवं संचालक हैं। इस संस्था के माध्यम से आज देश एवं विदेश में वास्तुशास्त्र तथा पराविज्ञान (ऑकल्ट साइंस) से सम्बंधित अन्य कोर्स भी करवाए जाते हैं। विश्व की अग्रगण्य प्राइवेट वास्तु-शिक्षण सस्थाओं में से यह एक है। यहाँ  सभी प्रकार के वास्तु कोर्स बड़ी ही वैज्ञानिक पद्धति से सिखाए जाते हैं। डॉ. आनन्द भारद्वाज जी का तो यह कहना है कि हमारी संस्था में पढ़ा विद्यार्थी दुनिया में अपना नाम कमाये और लोगों की अच्छी एवं सच्ची सेवा करे। वह उनके दुख दर्द को कम करके उनका जीवन सुख एवं आनन्द से परिपूर्ण कर दे और वास्तुशास्त्र के प्रति लोगों के मन में पनपते अंधविश्वास, भ्रम, वहम आदि को दूर करे। आज भारत में वे ऐसे वास्तु विशेषज्ञ हैं जिन्होंने वास्तुशास्त्र को एक नए मुकाम पर पहुंचाने का सफल प्रयास किया है। साथ ही साथ अपने पूरे जीवन को वास्तुशास्त्र के प्रति समर्पित किया है।

पुराने समय में भारत में जहां वास्तुशास्त्र को केवल एक वैदिक पद्धति के रूप में देखा जाता था या फिर उसे केवल ज्योतिष का ही एक भाग माना जाता था, आज उन्होंने इसके पीछे छिपे विज्ञान को उजागर किया है। जहाँ एक ओर हमारे ऋषि मुनियों ने वास्तुशास्त्र के सिद्धान्त एवं उसके पंचतत्वों के विषय में लिखा व लोगों को इससे अवगत कराया वहीं दूसरी ओर डॉ. आनन्द भारद्वाज जी ने आज के समय में लोगों को वास्तुशास्त्र के प्रति आधुनिक सोच विचार के साथ वैज्ञानिक पद्धति से अवगत कराया। लोगों के मन से वास्तुशास्त्र के प्रति छिपी भ्रांतियों को दूर करके उन्होंने इसे विज्ञान के नजरिए से देखना सिखाया है।

संतोष विश्वनाथ फासे: वे महाराष्ट्र के रहने वाले हैं। इन्होने इंजीनियरिंग में डिप्लोमा (डी.पी.) किया है और साथ में प्रबंधन का भी डिप्लोमा (डी.बी.एम) किया है। तत्पश्चात इन्होने इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वैदिक कल्चर से वास्तुशास्त्र की पढाई की और वास्तु महर्षि की उपाधि प्राप्त की। आज ये एक सफल वास्तुशास्त्री एवं वास्तु परामर्श दाता  के रूप में कार्यरत हैं। उन्होंने इस पुस्तक को लिखने में सहायक लेखक की भूमिका अदा की है।